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आवारा बादल

मोड़ 

रवि और गुलाबो की प्रेम कहानी पूर्णिमा की चांदनी जैसी हसीन , शीतल, सुहानी, दिलकश और अनुपम होने लगी थी । एक जूही की कली थी तो दूसरा मदमस्त भंवरा । एक बांहें फैलाती हुई धरती तो दूसरा बांहों में समाने को आतुर आसमान । दो बदन एक जान बन गये थे वे दोनों । रवि ने सब लड़कियों से पीछा छुड़ा लिया था । वह केवल गुलाबो का होकर रह गया था । उसे स्वयं विश्वास नहीं होता था कि वह इतना बदल जायेगा । वक्त भी कैसे कैसे मोड़ लेकर आता है जिंदगी में । 

रवि का यह बदलाव रघु को पसंद नहीं आया । उसे तो रसिया रवि चाहिए था न कि आशिक रवि । दोनों में अलगाव हो गया था । अलगाव रंजिश में बदलने लगा था । रघु तो जैसे दुश्मन बन गया था रवि का । उसने बहुत समझाने का प्रयास किया था मगर "छोड़ आये हम वो गलियाँ" वाली तर्ज पर रवि ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा था  । 
गुलाबो ने उसका ध्यान पढ़ाई की ओर कर दिया था । वह पढने में अब खूब ध्यान  लगाने लगा । उसे अब ना कोई "लवी" और ना कोई "प्यारे" की जरूरत थी और ना ही "संगम स्थल" बने उस फोटो स्टूडियो की आवश्यकता थी । अब तो बस उसे गुलाबो के प्यार की आवश्यकता थी , और कुछ नहीं । वह जी लगाकर मेहनत करने लगा था । 

सीनियर माध्यमिक यानी कक्षा 12 की बोर्ड की परीक्षाएं हो गई थीं । अब तो उसे कॉलेज में एडमिशन लेना था । किस कॉलेज में एडमिशन लें, इस पर मंथन चलता रहता था । 

आदमी कुछ भी सोचे मगर होता वही है जो ईश्वर को मंजूर होता है । रवि ने भी अब ऊंचे ख्वाब देखने शुरू कर दिये थे । वह और गुलाबो दोनों ख्वाबों की दुनिया में जी रहे थे । 

एक दिन जब रवि गुलाबो से मिलकर अपने घर वापस आ रहा था तो दूर से उसके घर पर बहुत भारी भीड़ दिखाई दी । बहुत शोरगुल भी हो रहा था वहां पर । लड़ाई झगड़ा भी होने लगा था । गाली गलौच की आवाजें भी पड़ने लगी थीं उसके कानों में । वह कुछ सहमा , ठिठका और धड़कते दिल से आगे बढने लगा । शोरगुल के कारण आवाजें साफ सुनाई नहीं दे रही थीं । 

रवि जब नजदीक पहुंचा तो उसे ज्ञात हुआ कि एक लड़की मधु और उसके परिवार वाले वहां पर आये हुए हैं । उनके साथ साथ आधा सा गांव भी आया हुआ था । मधु के परिवार वाले कह रहे है कि मधु के पेट में रवि का बच्चा पल रहा है । मधु लगातार रोये जा रही थी । गांव वाले रवि के घर में तोड़फोड़ करने लगे थे । घर से सामान निकाल निकाल कर बाहर फेंक रहे थे । उसे नष्ट कर रहे थे । उसकी मां और उसके पिता दोनों ही इस बात से इंकार कर रहे थे कि रवि ऐसा लड़का नहीं है । मधु झूठ बोल रही है । लेकिन मधु के घरवाले उनकी बात मान ही नहीं रहे थे । सब लोग रवि का ही इंतजार कर रहे थे कि वह ही इस तथ्य की पुष्टि करेगा कि क्या मधु के पेट में उसका बच्चा पल रहा है ? 

रवि को देखकर भीड़ अचानक बोल पड़ी "रवि आ गया । रवि आ गया" । रवि को रास्ता देने के लिए भीड़  एक तरफ छंटने लगी । 

रवि को देखते ही मधु जोर जोर से चिल्लाने लगी "यही है वह दुष्ट जिसने मुझे इस हालत में पहुंचाया है । इसी ने अपने प्रेमजाल में फंसा कर मेरी यह दुर्गति की है । मुझे बरबाद कर दिया है इसने" । और वह दहाड़े मार कर रोने लगी । 

सबकी निगाहें रवि पर ठहर गयीं । कुछ लोगों ने रवि को पकड़ लिया और उसे मारने को तैयार हुए लेकिन कुछ बड़े बुजुर्गों ने उन्हें यह कहकर रोक लिया कि पहले एक बार इससे पूछ तो लीजिए । फिर जो करना है , कर लेना । 

चारों ओर से प्रश्नों की बौछारें होने लगी । 
"बता, ये तेरा बच्चा है क्या ? बोल ? अब चुप क्यों है ? वैसे तो दिन भर चकर चकर करता रहता है । अब जुबान पर ताला जड़ लिया है । सही सही बता दे तो कुछ रहम भी कर सकते हैं नहीं तो यहीं मारकर यहीं दफना भी देंगे, हां" । 

रवि को काटो तो खून नहीं । इस स्थिति की कल्पना कभी नहीं की थी उसने । क्या ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे उसे ? अगर उसे ऐसा होने की संभावना  पता होती तो वह ऐसे काम नही करता । पर अब तो वह सब कुछ हो गया था जो नहीं होना चाहिए था । सरपंच साहब की इज्ज़त, मान मर्यादा सब विखंडित हो गयी थी । मां का विश्वास टूटते कितनी देर लगी ? पूरे गांव के सामने वह अपराधी की तरह खड़ा हुआ था । किसी ने सच ही कहा है कि बुरे काम का बुरा नतीजा या फिर यों भी कह सकते हैं कि बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाय । जो बोया है वह तो काटना ही पड़ता हैं । 

रवि ने मन ही मन सोचा "ये मधु भी कितनी स्वार्थी है । मैंने ना तो इससे कभी कोई जोर जबरदस्ती की थी और ना ही इसे धोखे से फंसाया था । उस दिन भी मैंने तो मना किया था मगर यह मान ही नहीं रही थी और आज यह सरासर झूठ बोलकर हमारी इज्ज़त सरेआम नीलाम कर रही है । ये कैसी मुसीबत में डाल दिया है इस बेवकूफ ने । पहले तो कहती थी कि वह किसी के बाप से भी नहीं डरती है मगर अब क्या हुआ ? एक ही झटके में सारी असलियत खोलकर रख दी । बेशर्म कहीं की ! मगर वह क्या करे ? मां बाप की इज्ज़त का सवाल जो है "? 
उसे कोई रास्ता सूझ नहीं रहा था । रवि के मन ने कहा कि जब ये झूठ बोल सकती है तो उसे झूठ बोलने से परहेज क्यों है ? उसे भी झूठ का ही सहारा लेना चाहिए । उसने अपना मन बना लिया था । 

"कौन है यह लड़की ? मैं इसे नहीं जानता हूं ।  मैंने इसे कहीं पर भी नहीं देखा है । ना तो मैं इसे जानता हूँ और ना ही यह मेरी क्लास में पढ़ती है ? न जाने क्या क्या अंट शंट बके जा रहे हो तुम सब लोग ? मेरी नहीं तो कम से कम मेरे मां बाप की इज्ज़त का तो खयाल करते आप सब लोग ? ये जो भी कह देगी क्या उसे ही सही मान लोगे आप लोग" ? 

चारों ओर सन्नाटा व्याप्त हो गया । सब लोग एक दूसरे को देखने लग गये । इतने में मधु चीखते हुए बोली 
"झूठ बोल रहा है यह । यही वो आदमी है जिसने मुझे इस हालत में पहुंचाया है । वो जो प्यारे लाल का फोटो स्टूडियो है ना , वहीं पर इसने अपनी अय्याशी का अड्डा बना रखा है । सभी लड़कियों को यह वहीं पर बुलाता है फिर उनके साथ अपनी मनमानी करता है " । वह लड़की फूट फूट कर रो पड़ी । 
"कैसा स्टूडियो और कौन प्यारे लाल ? मैं किसी को नहीं जानता हूँ । इन सबसे मेरा दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है । आप लोग मेरा विश्वास करो । चाहो तो प्यारे को भी बुलवा लो , उससे भी पूछ लो " । पता नहीं इतनी हिम्मत कहाँ से आ गयी थी रवि में । वह एकदम से मुकर गया था । बड़ी अजीब स्थिति हो गई थी । 

कोई कुछ और कहता इससे पहले ही उस लड़की के भाई और पिता ने रवि को पकड़ लिया और उसकी धुनाई शुरू कर दी । इस हमले से रवि हक्का बक्का रह गया । वह जमीन पर गिर पड़ा और लोग उसे पीटते रहे । रवि ने बहुत कोशिश की उनसे छूटने की मगर वह उनकी गिरफ्त से छूट नहीं पाया और लगातार पिटता रहा । 

उधर सरपंच साहब और रवि की मां को भी रवि के द्वारा इंकार करने पर जोश आ गया और उन दोनों ने बाकी सभी लोगों से आह्वान किया कि वे रवि को बचायें । कुछ लोग रवि को पिटने से बचाने लगे । 
रवि लहूलुहान हो गया था । उसे जगह जगह पर चोटें आई थी । लोग उसे मारे जा रहे थे, मारे जा रहे थे । वह पिटता जा रहा था और चीखता चिल्लाता भी जा रहा था । उसने अपनी पूरी शक्ति एकत्रित की और जोर से दम लगाया तो वह सबकी गिरफ्त से मुक्त होकर अलग हो गया । उसने आव देखा न ताव , बस दौडना शुरू कर दिया । भीड़ पीछे पीछे दौड़ने लगी । रवि आगे , भीड़ पीछे । भीड़ उस पर लाठी, डंडे, पत्थर सब बरसा रही थी मगर  रवि इन सबसे बेखबर होकर बस दौड़ता ही जा.रहा था । दौड़ते दौड़ते एक रास्ते में एक रेलवे स्टेशन आ गया था । भीड़ अभी भी उसका पीछा करते हुए पत्थरों की बरसात कर रही थी । अब अगर वह भीड़ के हाथ आ गया तो उसका जीवित रहना मुश्किल हो जायेगा , वह सोच रहा था। जब आदमी को अपनी जान का खतरा होता है तब वह अपनी सारी ऊर्जा अपनी जान बचाने में लगा देता है । रवि की जान बचने की बस एक ही जगह थी , और वह थी भीड़ से पीछा छुड़ाना । वह रेलवे ट्रैक के बगल बगल से दौड़ रहा था । इतने में एक सुपर फास्ट एक्सप्रेस उधर से गुजरी । रवि ने आव देखा ना ताव , उसकी सीढियां पकड़ लीं और घिसटता चला गया । डिब्बे में मौजूद लोगों ने उसे ऊपर पकड़कर खींचा और वह डिब्बे में गैलेरी में ही गिर पड़ा । 

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2 Comments

Roshan

14-Jan-2022 01:48 PM

Subhakamna

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Rakash

14-Jan-2022 12:44 PM

V. V. Good

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